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लिखने का भी एक नशा होता है …!!!

priyanka
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बहुत दिनों से कुछ लिखा नही था लेकिन फिर भी मन कुछ न कुछ सोचते जा रहा था मन भी कहाँ किसी के रोके रुकता है वो तो बस अपने ही मन की करता है………………………. ये बात तो है मै चाहे कलम से कितने भी दिन दूर रहू लेकिन मन में कुछ न कुछ लिखती ही रहती हूँ मन लिखने के नशे में डूबा रहता है ………..बस इसी फिराक में रहता है की जैसे ही थोड़ी फुरसत मिले और लिख लूँ …………….. पुराने दिन याद करती हूँ स्कूल और कॉलेज के दिन जब फुरसत ही फुरसत रहती थी ……………. नहीं नहीं ऐसी बात नहीं थी की मै पढ़ाई लिखाई से दूर भगा करती थी पर …… मन को और कोई खास काम नही रहा करता था ………………..सिवाय मेरे संग सोचने के सिवा वो मेरे संग मिल कर कुछ न कुछ खिचड़ी पकाता ही रहता था ………… हम दोनों एक लम्बी उड़ान पर निकल जाते थे ……………. मन की उड़ान …. मन जो कहीं भी जा पहुँचता है उसे उड़ने के लिए किसी हवाई जहाज की जरुरत तो होती नही है ……………… मुझे अभी भी याद है जब मैंने मन के साथ मिलकर पहली कविता लिखी थी अपने घर के पीछे लगे हुए बड़े बड़े केले के पत्तो पर …………. अब उसे पढ़ कर हंसी आती है ………… पर उस वक़्त जब वह कविता बच्चो की पत्रिका फुलवारी में छपी थी तब मै और मन हम दोनों कितने खुश हुए थे …………….. और कॉलेज के दिनों में तो पूछिए मत हम दोनों को बस एक ही काम था लिखना लिखना सिर्फ और सिर्फ लिखना ………….न जाने कितनी डायरिया भर डाली लिख लिख कर पर फिर भी हमारा नशा नही उतरा …………. रात को ३ बजे भी जब नींद अपने आगोश में लेने लगती थी तब मन झकझोर कर उठ देता था और लिखने का नशा हावी हो जाता था …………….. और हम दोनों ही इस नशे को छुपा कर ही करते थे किसी को पता नही चलने देते थे ………. किसी को भनक भी नही थी हमारे इस नशे के बारे में ………..आज भी कहाँ पता है किसी को ………….लिखना का नशा ऐसा नशा है जो बस अकेलापन चाहता है कोई न हो बस आप हो आपका मन हो और कागज़ कलम और कोई न हो ………….. दिन दुनिया से बेखबर बस लिखने के नशे में डूबे रहना चाहता है मन …………..इसके लिए रात का समय सबसे सही समय होता है बालकनी में कुर्सी रखकर उसमे आराम से पसर कर चाँद को तकते हुए लिखने की खुमारी में डूबे रहो ……….. लेकिन आजकल सारा नशा उतरा हुआ है इस बेरहम दुनिया के पचड़ो में पड़कर सारी खुमारी उतर चुकी है ………..ये दुनिया के रस्मो रिवाज़ ………… पहले तो शादी और ससुराल की उलझने और अब बच्चे की रोने की चीख-पुकार ………….. इन सब बातो के चक्कर ने तो मेरा नशा पूरी तरह उतार दिया है ……….. और अब तो मेरे नशे के सच्चे साथी मन ने भी मेरा साथ छोड़ दिया है उसे तो अब कागज़ कलम से ज्यादा बच्चे के संग खेलना उसे हँसते हुए देखना उसकी बदमाशियों में ज्यादा मज़ा आने लगा है ……………… अगर मै कोशिश भी करती हूँ और पुराने दिनों का वास्ता देकर उसके संग मिलकर कुछ लिखने की कोशिश भी करती हूँ तो भी वो बच्चे की किल्कारिया सुनकर भाग जाता है …………….. लेकिन मैंने भी ठान ली है की मै हार नही मानूगी आज मेरा मन मेरे साथ नही है तो क्या हुआ एक दिन फिर मै और मेरा मन साथ होंगे और हम दोनों फिर से लिखने के नशे में डूब जायेंगे तब तक मै जाती हूँ मन मुझे खींच कर ले जा रहा है बच्चे के संग खेल खिलौने खेलने के लिए…………………….

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