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मन की रद्दी टोकरी में फेंके हुए वो दिन
रोज़ की आपा-धापी में भूले हुए वो दिन
वो पुराने दिन …
कभी-कभी जब फुरसत के पलों को ढूंढ़कर उन्हें याद करती हूँ
तो मन को सहला जाते है
वो पुराने दिन…
ज़िन्दगी की उलझने जब उलझा देती है
समय व परिस्थितिया जब रुला देती है
ऐसे में ज़बर्दस्ती याद कर लेती हूँ
वो पुराने दिन…
वो दिन भी क्या दिन थे
जब छोटी छोटी खुशिया ही हंसा देती थी
वो भूतो वाली ईमली के पेड़ की कच्ची ईमली की खटास
वो नुक्कड़ वाले काका की गरमागरम जलेबी की मिठास
वो खट्टे-मीठे पुराने दिन…
वो पच्चीस पैसे के गटागट, एक रूपये की छह पानी-पूरी
वो गुरुवार के बाज़ार की सोंधी-सोंधी करारी भुनी मूंगफली
वो सस्ते से पुराने दिन…
वो सुबह-सुबह टन-टन-टन स्कूल की घंटी
वो सर की हाथ में पड़ती पतली सी डंडी
वो छुप-छुप के स्कूल से भागना
पकडे जाने पर झूठे आंसुओ का बहाना
वो शरारती पुराने दिन…
घर पहुंच कर मम्मी को सारी बाते कहना
किताबो के अन्दर कामिक्स रख कर पढना
गणित के कम नंबर डैडी से छुपाना
भूखे होने पर भी सीरिअल के समय पर ही खाना खाना
वो बहाने वाले पुराने दिन…
वो कालेज में नीम के पेड़ के नीचे सहेलियों से बतियाना
बात बात पर हंसी का छुट जाना
अचानक चाँद-तारो, फुल-खुशबु, बारिश की बूंदों से प्यार हो जाना
वो सलमान खान का सपनो में आना
सपने से वो पुराने दिन…
पंख लगाकर उड़ जाते है वो पुराने दिन
इसलिए मन की तिजोरी में याद बनाके बंद कर लिया है
वो हीरे से अनमोल पुराने दिन…
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