priyanka
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कभी तुमने देखा है धुप को –
आसमान से उतर कर छत से होकर घर के आँगन पर पसरते हुए…
कभी तुमने देखा है धुप को-
लकड़ी की खिड़कियो के कोनो से निकल कर उंगलियो से खेलते हुए…
कभी तुमने देखा है धुप को-
आसमान के काले बादलों से छुप कर चोरी से बारिश की बूंदों पर पड़ते हुए…
कभी तुमने देखा है धुप को-
सर्द कोहरे को चीरकर पत्तो पर पड़ी उस की बूंदों को सुखाते हुए…
कभी तुमने देखा है धुप को-
धरती पर अपनी तपिश छोड़कर आसमान के कोनो में लौटते हुए…
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