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मन से विचारो की दूरी ……

priyanka
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……………..पिछले कुछ महीनो मै इस मंच से दूर रही तो यूँ लगा जैसे मन से विचार ही दूर हो गए ……और मन में न जाने क्या क्या कचरा जमा हो गया ………क्योंकि जब विचारो को कहीं लिख नहीं पायी तो, वो जमा होते होते कचरा ही बन गए, वैसे ही जैसे हम अपने घर में सामाँन इकठ्ठा करते चले जाए और पुराने सामानों को न निकाले तो घर में जगह ही नहीं बचेगी और घर कचरा-घर बन जाएगा वैसे ही कुछ मेरे साथ हुआ ……मन में आये विचारों को कहीं लिख नहीं पायी वो मन में ही रह गए और नए विचारों के आ जाने से मन में ढेर सारा कचरा जमा हो गया और हद तो तब हो गयी जब इस कचरे की वजह से मन से विचार ही दूर होने लगे यानी की मन ने सोचना ही बंद कर दिया ………और मेरे लिए तो ये बड़ी भयावह स्तिथि हो गयी थी क्योंकि जब इंसान का मन सोचना बंद कर दे मन में विचार ही न हो सिर्फ कचरा हो तो वो धीरे धीरे जानवर बनने लगता है …………….और किसी भी इंसान के लिए तो ये बड़ी सोचनीय बात हो जाएगी की वो इंसान न रहे और जानवर बनने की और अग्रसर होने लगे ……………..इसलिए मैंने पुनः कलम उठा ही ली यानी की की-बोर्ड उठा ही लिया ……….वैसे इस मंच से मै एक हफ्ते पहले ही जुड़ गयी थी पर पर यहाँ इतना कुछ बदल गया था तो एक हफ्ते तो इस बदलाव को ही पढ़ती रही पीछे जितना कुछ छुट गया था उसे समेटा और उसे समेटने के बाद यानी की दुसरो के विचारों को पढने के बाद मेरे मन में भी कुछ विचारों का प्रवाह शुरू हुआ ………. पर अभी भी ऐसा लग रहा है जैसे की विचारों की वो गति नहीं बन पायी है जो पहले थी ………….वो शायद इसलिए भी है की पिछले दो-ढाई महीनो में बहुत कुछ घटा ………..हम पुराने घर से नए घर में आये और नए साल में भी प्रवेश किया और मेरा नन्हा सा बच्चा एक साल का हो गया उसने चलना सीख लिया ……….. और इन सबके बीच में मेरा लिखना छुट गया …… खैर…………कोई बात नहीं ………लेकिन हाँ मुझे हमेशा ये जरुर लगता रहा की पता नहीं यहाँ क्या क्या लिखा जा रहा होगा और मै उन सब को पढ़ नहीं पा रही हूँ जैसे किसी फिल्मो के दीवाने को परीक्षा के समय ये लगता है की उफ़ कितनी सारी फिल्मे आ गयी और मै नहीं देख पाया ठीक वैसे ही मुझे लग रहा था …….की पता नहीं पियूष जी ने कौन सी प्रेरणास्पद रचना लिख डाली होगी और राजकमल जी ने और किसी अनोखी रचना का निर्माण कर डाला होगा ………. पिछले दो-ढाई महीने मै अपने इस लिखने के नशे से दूर रही और मुझे ऐसा लगा जैसे कुछ और समय दूर रही तो कहीं पागल न हो जाऊ ………. लिखना मेरे लिए एक नशा ही है एक ऐसा नशा जो मुझे शान्ति और सुकून पहुंचाता है …………. और जब मुझे सुकून मिलता है तो मै खुश होती हूँ और जब मै खुश होती हूँ तो अपने आस-पास के लोगो को भी खुश रखती हूँ और मुझे लगता है की एक गृहणी का खुश रहना बहुत जरुरी है ………………. अगर वो खुश है तभी उसका घर भी खुश रहेगा …………… हर इंसान अपने जीवन में और चाहता भी क्या है एक सुकून भरी शांत खुशमय ज़िन्दगी ……………… खैर छोड़िये हम सबके चाहने से क्या होता है क्या हम सब सच में वो सब मिल पता है जो हम चाहते है हम इस शांति और सुकून की तलाश में जीवन भर भटकते ही रह जाते है हम उसे ढूंढ़ नहीं पाते क्योंकि हमारे ढूंढने में ही गलती होती है…………..और इस सच को जान लेने के बाद भी हम ये स्वीकार कहाँ कर पाते है की गलती हमारे ढूंढने में थी हम अपने दुखो के लिए हमेशा दुसरो को ही ज़िम्मेदार ठहराते है ……….और जब कोई और नहीं मिलता तो भगवान् तो है ही उसे भी कोसते है ……….ऐसा ही कुछ फिलहाल मेरे साथ हो रहा है आजकल मेरी भी भगवान् से लड़ाई चल रही है देखती हूँ कब मै अपनी गलती स्वीकार कर पाती हूँ और भगवान् को कोसना बंद कर पाती हूँ ………. फिलहाल के लिए इतना ही ……………. आप सबको शुभ-संध्या …………

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