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“प्रेम और प्रेम का अहसास कब आपके मन में समां जाता है ये आपको पता ही नहीं चलता ….. और किस पल कोई पराया अपना लगने लगता है सारे जग से भी प्यारा लगने लगता है ये भी एक पहेली ही है ……ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ ……. ये कविता मैंने अपनी सगाई के बाद लिखी…… प्रेम के इस उत्सव को आप सबके साथ मै भी मनाना चाहती हूँ इसलिए प्रस्तुत है प्रेम की एक पाती मेरी और से …
समर्पण प्रेम का, समर्पण विश्वास का
ये मेरा मूक समर्पण, है आपके नाम का
मेरे तन का रोम रोम, है समर्पित आपके लिए
मेरे मन के समस्त विचार, है समर्पित आपके लिए
जब से बाँधी मेरी ऊंगलियो पर, आपने अपने नाम की डोर
तबसे मेरे जीवन का पल पल है समर्पित आपके लिए
सोचती हूँ कभी कभी अपने भावनायो के इस प्रथम अहसास के लिए
दू क्या आपको, अपने आपके सिवा ……………………………
मै जानती हूँ मै इतनी अमूल्य अनमोल नहीं………………………
पर, जैसी भी हूँ , हूँ समर्पित आपके लिए ………………………….
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