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……….फ़रवरी के आते ही ठण्ड कुछ कम हो गयी और मौसम कुछ खुशनुमा हो गया है ……और शायद ये मौसम का ही असर की हर तरफ प्यार ही प्यार छाया हुआ है … जहां भी जाओ प्रेम, प्यार, इश्क, मोहब्बत, की ही चर्चा है….. अभी कल की ही बात है, हम खरीदारी करने निकले….. एक किताबो की दूकान में खड़े होकर किताबो को निहारने लगी तो देखा फ़रवरी माह की हर पत्रिका प्रेम विशेषांक थी ……..आगे बढ़ी एक उपहारों की दूकान पर गयी तो वहाँ बधाई कार्ड हो या उपहार सब के सब प्रेम से ही सम्बंधित थे ……एक पूरी श्रुंखला ही बनी हुई थी प्रेम से जुड़े उपहारों की …………. और थोड़ी आगे बढ़ी तो सोने हीरो की दुकाने थी वैसे तो इस मंहगाई में जहां प्याज टमाटर भी सोच कर खरीदना पड़ता है इन जवाहरातो की दूकान में तो मै घुसती ही नहीं लेकिन हाँ अपने स्त्री मन को कितना समझाओ आँखे तो मुड़ ही जाती है ……और वैसे भी देखने के तो पैसे लगते नहीं है तो यूँ ही चलते चलते उन्हें भी एक हलकी नज़र मार ही ली ……और वहाँ भी क्या देखा वैलेंटाइन सेट, कपल सेट, और न जाने क्या क्या यानी की यहाँ भी प्रेम से ही जुड़े सोने हीरे के जेवर …………… और जब घर आकर फुरसत पाकर लेपटोप पर जागरण जंक्शन की साईट खोली तो यहाँ भी प्यार ही प्यार बेशुमार ………….. तब समझ आया की ये फ़रवरी के गुलाबी मौसम का नहीं १४ फ़रवरी वैलेंटाइन डे का असर है जो हर कोई प्यार की खुमारी में डूब गया है ………..और डूबना भी चाहिए प्यार है ही ऐसी चीज़ की इसके असर से कोई बच ही नहीं पाता…. बड़े बड़े तुर्रम खान भी प्यार के जादू से अपने को बचा नहीं पाए तो हम किस खेत की मुली है ………प्यार से जुड़े मैं सबके ब्लॉग पढ़ती रहती हूँ ब्लॉग ही नहीं और भी कई किताबे पर मुझे ये किताबी भाषा और प्यार के बारे में कही जाने वाली बड़ी बड़ी बाते कुछ ख़ास समझ नहीं आती ………अक्सर सब जगह यही लिखा जाता है की प्यार अनमोल अहसास है, प्यार में कोई शर्त नहीं रखनी चाहिए प्यार में कोई अपेक्षा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए प्यार में स्वार्थ की भी कोई जगह नहीं होती आदि, इत्यादि ………….. पर मुझे ये किताबी प्यार कभी भी हजम नहीं हुआ ………. मुझे नहीं लगता की की ये किताब बाते सच में सच होती है…. प्यार में शर्ते भी होती है उम्मीदे भी अपेक्षाए भी …. प्रेम में क्रोध भी होता है स्वार्थ भी जलन भी …….. और इन सब बातो से प्रेम कम भी नहीं होता और न ही प्रेम का महत्व कम आँका जा सकता है …… जब हम प्यार में शर्ते रखते है तो हम वो रिश्ता और मज़बूत ही करते है …. जैसे माँ अपने बच्चे को अपने प्रेम का वास्ता देकर ही कुछ गलत करने से रोकती है, वो अपने छोटे से बच्चे को कुछ खिलाती है तो ये ही कहकर की अगर तुम ये नहीं खाओगे तो मम्मा तुमसे बात नही करेगी अगर देर रात तक घूमोगे तो घुमो जब तक घर नही आओगे मम्मा खाना नहीं खाएगी ……. और ये सुनते ही बच्चा घर की ओर दौड़ पड़ता है ………… इसी तरह प्रेमी भी एक दुसरे के सामने कई शर्ते रखते है जैसे देर रात तक न घूमने की शर्त ज्यादा दारु न पिने की शर्त , अपने सिवा किसी और को न देखने की शर्त , और भी ऐसी ही कई छोटी छोटी रिश्ते से जुडी शर्ते ….. हम शर्ते उनके सामने ही तो रखते है जब हम जानते है की वो पूरी होंगी ………. हम अपेक्षाए उम्मीदे उन्ही से करते है जिनसे प्रेम करते है किसी भी राह चलते से तो हम उम्मीद नहीं कर लेते की वो हमें ठोकर नहीं मारेगा जिनसे प्रेम करते है उनसे ये उमीद लगा ही लेते है की वो हमें संभालेगा सहेजेगा………… हम इंसान है हमारे मन में इंसानी भावनाए तो होंगी ही ……..और हर इंसान के अन्दर क्रोध, अहम्, स्वार्थ, रूपी भावनाए होती ही है …….. और जिनमे नहीं होती वो संत महात्मा हो जाते है वो इंसान नहीं रहते इंसान से कुछ बढ़कर हो जाते है ………. अगर कोई प्रेमी अपने प्रेमी का इंतज़ार कर रहा या रही हो और वो देर से आये या आये ही नही तो क्रोध तो आयेगा ही कौन है जो कहेगा की नहीं मेरे प्रेम में कोई शर्त या अपेक्षा नहीं है तुम नही आये या देर से आये कोई बात नहीं ……….. जो इंतज़ार कर रहा होगा वो गुस्सा तो होगा ही फिर वो चाहे आज का प्रेमी हो या कल का प्रेमी ………… इसी तरह स्वार्थ भी प्रेम में होता ही है ज्यादा प्रेम पाने का स्वार्थ, अपने प्रेम में बांधे रखने का स्वार्थ ……….. हर कोई प्रेम में थोड़ा सा स्वार्थी तो हो ही जाता है ……. पूछिए उस माँ से जो अपने बेटे को तिलक लगाकर साफा पहनाकर घोड़ी पर चढ़ाती है उसकी आँखे नम हो जाती है, आँखों के कोरो से निकलते हुए आंसुओ को चुपके से पोंछती है वो जानती है की जिस बेटे को अपने छाती से लगाकर पाला अब वो बेटा उसके प्रेम का भागीदार लेने जा रहा है ……….. हर माँ रोती है ……… थोडा सा स्वार्थ थोड़ी सी जलन उस माँ की ममता में आ ही जाती है पर फिर भी कहीं से उसकी प्रेम की महत्ता में कमी नहीं आती , ये सब प्रेम के राग है , रस है ……. जब ये सारे राग मिलकर एक साथ प्रेम रुपी बांसुरी बजाते है तो उसकी धुन में कुछ और ही सुरूर होता है ……….. पर हाँ कहते है न की अति हर चीज़ की बुरी होती है …….. बस किसी भी भावना की अति नही होनी चाहिए ज्यादा क्रोध किसी रिश्ते को जला सकता है …. ज्यादा स्वार्थ प्रेम को ख़त्म कर सकता है ………….. इसी तरह ज्यादा प्रेम भी किसी इंसान को बिगाड़ सकता है ……….. जब हम प्रेम रूपी बांसुरी में कोई बी राग को ज्यादा छेड़ देते है तो बेसुरी धुन तो निकलेगी ही ………लेकिन हर कोई हरी प्रसाद चौरसिया तो बन नही सकता जो की सधी हुई बांसुरी बजा सके ……. बेसुरी धुन निकलती है और ज़िन्दगी में परेशानिया कठिनाइया आ जाती है ………. पर यही तो हमारा जीवन है हम प्रेम में लड़ते है झगड़ते है रुठते है ………. और फिर प्रेम में ही तो मनाते है ………. जिसके जीवन में सिर्फ प्रेम ही प्रेम है उसका जीवन तो गुलाबजामुन की चाशनी बन जाएगा फिर वो बिचारा कितना चाशनी पिएगा …………इतना मीठा जीवन क्या उसे भाएगा ……जब तक जीवन में प्रेम के हर रस राग नहीं होंगे वो जीवन सूना ही रहेगा …………प्रेम एक ऐसा शब्द है इसके बारे में कितना भी लिखा जाये लगता है कुछ छूट गया है लेकिन लेखक की भी अपनी सीमाए होती है शब्दों की, समय की, लेख की लम्बाई-चौड़ाई की, लेकिन फिर भी कितना भी कह लू बहुत कुछ अनकहा रह गया है …………..शुभ प्रभात ……..
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