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दिल्ली के मौसम का कोई भरोसा नहीं अभी तीन दिन पहले तक यहाँ गर्मी छायी हुई थी और दो दिनों से बारिश हो रही है और परसों रात तो यहाँ बारिश के साथ साथ ओले भी पड़े ……….आधी रात को अचानक ताड़ ताड़ करते हुए ओलो के गिरने की आवाज़ के साथ अचानक नींद खुली …….और सुबह मौसम खुला हुआ था और धुप निकली हुई थी …………….लेकिन अभी शाम शाम होते होते बादल छाने लगे है ………… जैसे मौसम का भरोसा नहीं है वैसे ही इस मंच का हाल हो गया है ……. पता नहीं कब किस लेख को लिखते ही आप पर तोहमते लग जायेंगी और कब किसी लेख पर प्रतिक्रिया देते ही सामने वाला बुरा मान जाएगा…………. वैसे मै इस मंच पर पिछले साल सितम्बर में जुडी भला हो गूगल का मैंने हिंदी ब्लॉग टाइप करके सर्च किया तो जागरण मंच के दर्शन हुए और फटाफट मैंने अपने आप को रजिस्टर कर लिया और मेरे नाम से यहाँ एक ब्लॉग हो गया ….. ब्लॉग ये शब्द भी मैंने अखबार में ही पढ़ा था की पहले तो मुझे समझ में नहीं आया की ये क्या है ….फिर जब शब्दकोष में देखा तो पाया की ब्लॉग को हिंदी में चिटठा या वेबदैनिकी कहते है …………… इसलिए ही मै इस मंच से जुड़ गयी ………. मै अपने आपको कोई बहुत बड़ा साहित्यकार या लेखिका नहीं मानती और न ही अपनी रचनायो को उस स्तर का मानती हूँ …………और यदि ये मंच केवल साहित्यकारों या लेखको का मंच होता तो शायद मै यहाँ होती भी नहीं………. ब्लॉग का मतलब जानने के बाद ही मै इस ब्लॉग नामक विधा से जुडी …….. वेबदैनिकी यानी की वेब के जरिये आप अपनी दैनिक कार्यविधि से जुड़े विचार रख सकते है ये आपका व्यक्तिगत चिटठा है ………….जिस तरह आपकी व्यक्तिगत डाइरी होती है जिसमे आप अपने मन के विचार लिखते है बस अंतर इतना है की इस डाइरी को आप सबके साथ बांटते है ………यानी की अपने विचारों को सबके सामने रखते है ……….यकीन जानिये अगर मुझे ज़रा भी इल्म होता की यहाँ मेरे अपने विचारों को रखने से साहित्य या लेखन विधा को क्षति पहुँच सकती है तो मै ऐसा करने से पहले जरुर सोचती ………………जहां तक प्रेम के बारे में मेरे विचारों का प्रश्न है मै अभी तक नहीं समझती की मैंने अपने पूर्व ब्लॉग में कहीं भी कुछ गलत लिखा ……..अभी भी मै अपने उन्ही विचारों से सहमती रखती हूँ ……………..मेरे लिए जीवन वही है जो मै जी रही हूँ और अपने आस-पास लोगो को जीते हुए देख रही हूँ ठीक इसी तरह प्रेम भी वही है जो मै स्वयं करती हूँ और अपने आस पास पाती हूँ …….और मै वही लिखती हूँ जो मै सोचती हूँ …………….. और मेरी सोच में हम सब इंसान भावनायो के पुतले है …………. बिना भावनायो के हम इन्सान हो ही नहीं सकते ……….. और हमारे अन्दर सारी भावनाए होती है जिसमे की अच्छी और बुरी दोनों भावनायो का समावेश है ………….. जिसमे प्रेम, त्याग, ममता, करुना, कर्त्तव्य, वफादारी के साथ कुछ बुरी भावनाए भी जैसे क्रोध, स्वार्थ, इर्ष्या, आदि भी है ………….. हमारे इंसानी मन में हर भावनाए रहती है ………..हर इंसान की प्रवुत्ति भी अलग अलग होती है ………और मेरे ये लिखने का अभिप्राय यही है की जब हम प्रेम किसी से करते है तो प्रेम के साथ साथ दूसरी भावनाए भी अभिव्यक्त होती है ……….जैसे की मै अपना ही उदाहरण देती हूँ हम ३ भाई बहन है दादा यानी की मेरे बड़े भैया, बचपन में ही नहीं बड़े होने पर भी हममे बहुत लड़ाइया हुई है बचपन में तो हाथापाई भी हो जाती थी और अब बड़े एवं समझदार होने पर मौखिक बहस हो जाती है ……..लेकिन इन सारी लड़ाइयो के बावजूद हमारे बीच प्रेम है और दिल्ली जैसे महानगर में रहते हुए भी हमारी रोज़ एक बार जरुर बात होती है ……..हमारे बीच प्रेम है पर हमारे उस प्रेम में क्रोध भी आ जाता है मै उनसे नाराज़ भी हो जाती हूँ और भाभी के आ जाने पर इर्ष्या की भावना भी आई की कहीं वो हमारी उपेक्षा तो नहीं कर देंगे ………..और मुझे लगता है की ऐसा ही हर भाई बहन का रिश्ता होता होगा ………. ठीक इसी तरह हर प्रेम का रिश्ता होता है हम ये जानते हुए भी की क्रोध, इर्ष्या, स्वार्थ ये सब दुर्गुण है और इनसे हमें दूर रहना चाहिए हम अपने आपको कहाँ बचा पाते है……….. क्योंकि हम मनुष्य है और हम अपनी दैनिक दिनचर्या में ऐसी परिस्तिथियों में फंस जाते है की इन दुर्गुणों के भंवरजाल में फंस ही जाते है ………… कई महात्मा अपने प्रवचनों में और कई महापुरुषों ने अपने ग्रंथो में जीवन प्रेम से जीने के कई उपदेश देते है ………. और वो उपदेश गलत नहीं होते है ……..जीवन के सार होते है वो उपदेश और गहन चिंतन के परिणाम होते है वो उपदेश …..और मै किताबी बाते कहकर कतई इनकी अवहेलना नहीं करना चाहती हूँ …… परन्तु जब हम ये जीवन जीते है तो इसमें तमाम तरह की कठिनाइया उलझने परेशानिया भी हमारे सामने होती है ……………. हम कितना भी इस जीवन को प्रेम से बिताने की कोशिश करे कुछ न कुछ कमी तो रह ही जाती है और इसी कमी के कारण इंसानी दुर्गुण रूपी भावनाए भी व्यक्त हो जाती है …………. अब जैसे एक सीमा पर तैनात जवान अपने मातृभूमि के प्रेम के कारण ही तो युद्ध के दौरान गोली का जवाब गोली चला कर देता है ………..जबकि किताबो में लिखा जाता है की युद्ध विनाश की निशानी है पर हम यदि युद्ध के समय जवान बन्दूक न उठा कर प्रेम से जवाब देने लगे तो ये कायरता ही कही जायेगी ……..ठीक इसी तरह दैनिक दिनचर्या में कई उदाहरण मिल जायेंगे जैसे माँ पुत्र प्रेम में उसकी कई गलतियो को नादानियो का नाम देकर उसे पिता से बचाती है और उसे बचाने के लिए वो झूठ का भी सहारा लेती है जबकि झूठ भी एक दुर्गुण ही होता है……. हमारे सामाजिक रिश्ते पारिवारिक रिश्ते अंतर्मन के प्रेम पर ही टिके होते है …….. पर उस प्रेम का अहसास सबके लिए अलग अलग होता है ………… जैसे की हमारे घर में बर्तन मांजने के लिए बाई शकुंतला आती थी उसका पति रात को पीकर आता था और कभी कभी दो चार हाथ उसपर आजमा भी लेता था जिसे लेकर मै उसे हमेशा कहती थी की तुम क्यों सहती हो और जब एक दिन तीज का व्रत आया तो बाकायदा वो सजकर आई और मम्मी से कहा की शाम को नही आएगी क्योंकि उसने निर्जला व्रत रखा है तो मै चौंक गयी मैंने कहा की ऐसे पति के लिए तुमने व्रत रखा है तो उसने यही कहा की वो मारता जरुर है बेबी पर वो मुझसे प्यार भी करता है ये साड़ी वही लेकर आया बेबी आप अभी नही समझोगी शादी हो जायेगी तब समझोगी …. और आज शादी हो जाने पर मै यही सोचती हूँ की उम्र बीतने के साथ ही रिश्तो और उनमे छुपे प्रेम समझ में आते है ……… प्रेम एक अनमोल अहसास है जो इन दुर्गुणों के बावजूद मन में जगमगाता रहता है ………ये बुरे विचार ये दुर्गुण उस प्रेम की महत्ता को कम नहीं करते है ……….. हाँ मै ये अवश्य मानती हूँ की इंसान को इन बुराइयों से दूर रहना चाहिए लेकिन जब हम किसी प्रेम भरे रिश्ते को निभाते है तो वह रिश्ता हमेशा ही मीठा नहीं रहता वह रिश्ता कई आयामों से होकर गुजरता है और समय के साथ वह प्रेममयी रिश्ता ज़िन्दगी के हर रस का स्वाद लेता है जिसमे निम्बू की खटास, मिर्ची की तिखाई भी होती है ……..मैंने अपने पूर्व ब्लॉग में प्रेम में जिन भावो की बात कर रही थी उसके कहने का अभिप्राय यही था की हर उस रिश्ते में जिसमे प्रेम होता है उसमे समय पड़ने पर क्रोध नाराज़गी भी होती है ……. पर क्या जिस रिश्ते को निभाते वक़्त हमारे मन में क्रोध या इर्ष्या के भाव आ जाये वो प्रेम नहीं होता है उसे बुद्धिमान या बुधजीवी वर्ग समझौते से भरे रिश्ते का नाम दे देगा तब तो हर शादीशुदा जोड़े के बीच प्यार का नही समझौते का ही रिश्ता होता होगा ……….खैर मै अपने आपको विश्लेषक की श्रेणी में नहीं रखती की मै रिश्तो और उनके प्रेम का विश्लेषण करू की ये प्रेम है की नहीं …………… मेरे जीवन में समय समय पर जो जैसे हो रहा है वैसे ही मै उसे जीने की कोशिश कर रही हूँ और उसे वैसे ही इस ब्लॉग पर लिख देती हूँ और मेरे लिखने का अभिप्राय लेखन या साहित्य को नुक्सान पहुंचाने का नहीं है क्योंकि मै अपने आपको पारंगत नहीं मानती हूँ मै अभी सीख रही हूँ अपने आपको मै विद्यार्थी मानती हूँ ……….. एक विद्यार्थी की तरह मै कई गलतिया भी करती हूँ और उनसे सीखने की कोशिश करती हूँ ……….मेरे लिए जीवन पाठशाला के समान है, पाठशाला में हम जितने देर रहते है उतना ही अपने आपको ज्यादा समझदार और बुद्धिमान पाते है ……..ये ज़िन्दगी रोज़ हमें एक न एक पाठ जरुर सिखाती है और जिस दिन वो कुछ नहीं सिखाती उस दिन को मै रविवार मान लेती हूँ और जिस दिन कुछ घमासान सीखा देती है उस दिन को परीक्षा का दिन मान लेती हूँ और समय बीतने पर ऊपर बैठा परीक्षक हमें बताता है की हम पास हुए या फेल………जिस तरह एक स्वादिष्ट व्यंजन कई सामग्रियों से बनता है उसी प्रकार प्रेम रुपी व्यंजन भी कई भावनायो का मिला जुला रूप है जिसमे क्रोध इर्ष्या की भी छोटी सी मात्रा शामिल होती है, जो हमारे जीवन को चटाकेदार बनती है ……… पर फिर भी मै यही कहूँगी की ये मेरे विचार है ……….. पर अगर कोई इसे भी गलत माने या इसे कुंठित विचारधारा की संज्ञा दे तो मै क्या कह सकती हूँ लेकिन हाँ मेरे विचार से ह्त्या तो एक जघन्य अपराध है पर जब वही ह्त्या स्व रक्षा में या फिर किसी निर्दोष को बचाते हुए की जाए तो क्या वही ह्त्या अपराध की श्रेणी में आएगी …………….. जवाब आप सब जानते है ………. मेरे लिए लेखन सिर्फ मन बहलाव का जरिया नहीं है मै लिखती हूँ क्योंकि मै सोचती हूँ…….. और मै सोचती हूँ क्योंकि मै जी रही हूँ ……..जब ये मंच नहीं था मै तब भी लिखा करती थी ये अलग बात है तब डाइरी में लिखा करती थी ……….. लेखक की उपाधि पाना या अपनी किताब छपवाना मेरा उद्देश्य कतई नहीं है अगर किसी को मेरे विचार पसंद नहीं है तब भी मै लिखती रहूंगी क्योंकि लिखना मेरे लिए जीना है ……….. जब कभी मै कागज़ कलम नहीं पाती हूँ तो मन में ही लिख लेती हूँ फिर वो चाहे मन के कागज़ से मिट ही जाये ………………….जब अपने आसपास कुछ गलत होते हुए देखती हूँ और कुछ नहीं कर पाती तो उस कसमसाहट को लिख कर व्यक्त कर देती हूँ ………. पर उस गलत को देखते वक़्त मन में क्रोध आता है वो क्रोध इंसानियत के प्रति प्रेम के कारण आता है फिर कोई चाहे उस क्रोध को लाख बुरा कहे …………मै आज भी कहूँगी की मेरे प्रेम में क्रोध भी है स्वार्थ भी है इर्ष्या भी है ……मेरे प्रेम में बड़े बड़े उपमा अलंकार से सजे शब्द नहीं है मेरा प्रेम आम इंसान का प्रेम है……….. लिखते लिखते मै भावनाओं की रौ में बहती ही जा रही हूँ………अब हाथो को यही विराम देती हूँ ……… आप सबको शुभ -संध्या ……..
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