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आज चाँद कुछ उदास है,
मौसम भी कुछ बेखास है
छाया हुआ है मनहुसिअत का आलम
सोचती हूँ हमारे मन में संवेदनाये है भावनाए है
किसी अजनबी के दुःख से दुखी हो जाता है हमारा मन
और अपनों की परेशानियों से तो सहम जाता है हमारा मन
फिर कैसे किसी का इतना निर्दयी हो जाता है मन
की हजारो-लाखो लोगो की मौत की कल्पना कर जाता है
और इस कल्पना को साकार भी कर देता है
कैसे इंसान इतना कठोर हो जाता है
वो इंसान, इंसान नहीं शायद जानवर हो जाता है
शायद ही क्योंकि जानवरों की कौम को बदनाम करना ठीक नहीं
जानवर तो अपना पेट भरने के लिए ये करते है
और इंसान तो बस निजी स्वार्थ के लिए इसे अंजाम करते है
कितने लोग मर जाते है …………….
और अपने पीछे छोड़ जाते है कई मरी हुई जिन्दगिया
जो ढोते है उनकी मौत का उनकी यादो का बोझ
और अपनी जलाई-दफनाई खुशियों का बोझ
एक टीस एक कसक उन सबके दिल में है
काश! जो हुआ वो न हुआ होता
हम जिन आतंकियो को मार देते है
या जेल में बंद कर देते है
उन्हें उन परिवारों के पास भेजे
जो अपनों की मौत को रो रहे है
‘शायद’ उन्हें तब ये अहसास हो जाये
जो उन्हें अभी नही हो रहा
किसी माँ की सूनी आँखे …
किसी बाप का अनकहा दर्द…
किसी बच्चे का तोतला रोना…
किसी पत्नी की मरी हुई चल रही साँसे…
देख के ‘शायद’ उनके अहसास जाग उठे
‘शायद’ उनका जमीर धिक्कार उठे
कितने ‘शायद’ है अपने जीवन में
काश एक दिन ये ‘शायद’ कम हो जाये
मौसम कुछ ख़ास हो जाये
और… ‘शायद’
चाँद फिर खिल उठे………………
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