……….ऐ भाई जरा देख के चलो , आगे ही नहीं पीछे भी, दाए ही नहीं बाए भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी, ऐ भाई……………..दिल्ली की सडको पर निकलने वाला हर एक शख्स को ये गाना जरुर ध्यान से सुनना चाहिए और सिर्फ सुनना ही नहीं चाहिए बल्कि उसे अमल में भी लाना चाहिए , ये बात मै यूँ ही नहीं कह रही ……..हुआ यूँ की आज सुबह सुबह हम अपनी गाड़ी से ऐ.टी.म मशीन से पैसे निकालने के लिए गए और जब घर की ओर लौट रहे थे तो सामने रास्ता बंद था एक गाडी वाला ठेले वाले को पकड़ के उसपर बरसने में लगा हुआ था ………..उस ठेले वाले ने लगता है उसकी गाडी ठोंक दी थी ……और वो जनाब तो इतने गुस्से में थे की पूछिए मत ……बगल में उनकी बीवी भी खड़ी हुई थी, वो बिचारा ठेले वाला अपने हाथ पाँव जोड़ कर माफ़ी मांगे जा रहा था पर वो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं और उसे जबरदस्ती अपने गाडी में घास-फूस के गट्ठे की तरह डाल कर ले गए …………..अब मै डर गयी मैंने अपने पतिदेव से कहा की क्या करे, इन्होने कहा की गाड़ी का नंबर नोट कर लेते है पुलिस को फोन कर देंगे, फिर हमने ये भी सोचा की बीवी भी बैठी थी बगल में हो सकता है सिर्फ डराने के लिए या कुछ बात करने के लिए बिठा लिया हो …………………. खैर मै जबसे दिल्ली आई हूँ यहाँ पर सड़क पर कई बार ये हाल देखा है ……………..लेकिन मैं घर आकर यही सोच रही थी लोग मजबूरो की मज़बूरी का कितना फ़ायदा उठाते है …….वो बिचारा गरीब था इसलिए उसकी कोई इज्ज़त ही नहीं थी ………..अगर यही गलती कोई और बड़ी गाडी वाला करता तब भी क्या वो जनाब ऐसे ही उस बड़ी गाड़ी वाले से बात करते , और वैसे भी ये भी तो सोचना चाहिए की वो बिचारा आपकी गाडी को ठीक कराने के लिए पैसे कहाँ से लाएगा और आप उससे अपनी अकड़ या पुलिस का डर दिखा कर पैसे ले भी ले लेते हो तो ये तो सोचो की उसका पूरा दिन कैसे गुजरेगा , और सिर्फ पूरा दिन ही नहीं महीने भर का बजट भी गड़बड़ हो जाएगा हो सकता है की उसके बच्चो को उस दिन खाना ही न मिले ……………और वैसे भी गाडी का बीमा तो होता ही है आपके लिए इतनी कोई बड़ी बात नहीं होगी गाडी में लगी खरोंच तो ठीक हो जाएगी पर उस बिचारे गरीब हाथ ठेले वाले को जो मानसिक पीड़ा आप के व्यवहार से पहुंचेगी वो कभी ठीक नहीं होगी ……………………… और सोचने वाली बात ये भी है की सुबह सुबह नौ बजे भी वो जनाब इतने गुस्से में थे……….. जबकि सुबह सुबह तो लोगो को तरो-ताज़ा और शांत चित्त रहना चाहिए क्योंकि सुबह तो हमारी दिन की शुरुआत होती है और अगर शुरुआत ही ऐसी होगी तो पूरा दिन कैसा निकलेगा ……………..अभी कुछ दिनों पहले मैंने निशाजी की एक रचना पढ़ी थी “सबसे सस्ता मानव जीवन” आज इस घटना को देखने के बाद मन ये सोचने को मजबूर हो गया की ये सच ही है ………..जिस तरह उस गाडी वाले जनाब ने हाथ ठेले वाले को धकिया के ठेल के गाडी में डाला था उसे देख के तो यही लग रहा था की आज उस महँगी गाडी की खरोंच से भी ज्यादा सस्ता हो गया है मानव जीवन……………….इंसान के मन में स्वयम की जाती के लिए कोई सम्मान नहीं रह गया है ……………..अगर हमें सम्मान चाहिए तो हमारे पास पैसा होना चाहिए , रिश्ते नाते झूठ बन कर रह जाते है अगर आपके पास पैसे न हो तो ………आज इंसान सबसे ज्यादा महत्व पैसे को और सिर्फ पैसे को ही देता है ………….. गली के कुत्ते को दुत्कार कर भगा दिया जाता है लेकिन वही कुत्ता जब किसी अमीर के घर में सोफे में बैठा होता है तो उसके बगल में बैठने से कोई परहेज़ नहीं किया जाता ……………खैर जब इंसान के मन इंसान के लिए ही इतनी संवेदनहीनता आ गयी है तो जानवरों की तो बात ही क्या करे ………………..पर इस पैसे की अंधी दौड़ में अंत में हमें कहाँ ले जाएगी ……..इस दौड़ में जीतेगा तो वही जो अंत तक इंसान बना रहेगा ………खैर और चाहे जो हो पर आज के बाद से वो हाथ ठेला वाला भूल के भी किसी बड़ी गाडी के बगल से निकलने की हिम्मत नहीं करेगा और निकलेगा भी तो ये गाना जरुर गुनगुनाएगा ” ऐ भाई जरा देख के चलो ” ……………….. आप सबको शुभ संध्या ……..
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